मुनाफावसूली और कमजोर मांग के चलते कपास की कीमतों में गिरावट, उत्पादन में भी आई कमी
कपास की कीमतों में हाल ही में तेज गिरावट देखने को मिली है, जिसका मुख्य कारण मुनाफावसूली और वैश्विक स्तर पर कमजोर मांग है। आर्थिक मंदी की आशंका और अमेरिकी आयात शुल्क जैसे अंतरराष्ट्रीय कारकों ने कपास की वैश्विक मांग पर नकारात्मक असर डाला है, जिससे घरेलू बाजार भी प्रभावित हुआ है। हालांकि, स्थानीय कताई मिलों से आने वाली बेहतर मांग, कम घरेलू उत्पादन और सीमित बंद स्टॉक के कारण कीमतों में कुछ हद तक स्थिरता बनी हुई है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) ने 2024-25 की कपास फसल का अनुमान घटाकर 291.30 लाख गांठ (प्रत्येक 170 किलोग्राम) कर दिया है, जो पिछले अनुमान से 4 लाख गांठ कम है। इस कटौती का मुख्य कारण महाराष्ट्र में उत्पादन में आई गिरावट है। वहीं, कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) ने अब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर करीब 1 करोड़ गांठ कपास की खरीद की है, जिससे किसानों को कुछ राहत मिली है। दूसरी ओर, कपास उत्पादन एवं उपभोग समिति (COCPC) ने भी गुजरात में गिरती पैदावार को ध्यान में रखते हुए अपने दूसरे अनुमान में उत्पादन घटाकर 294.25 लाख गांठ कर दिया है, जो पहले की तुलना में 1.67% कम है। वायदा बाजार में भी उतार-चढ़ाव जारी है। एमसीएक्स पर कपास की कीमतें 52,920 से 54,920 रुपये के दायरे में रहने की उम्मीद है, जबकि अप्रैल 2026 के लिए कपास वायदा कीमतें 1,555 से 1,605 रुपये के बीच कारोबार कर सकती हैं। कोकूड (कॉटनसीड ऑयलकेक) की कीमतें भी 2,830 से 2,930 रुपये के दायरे में रहने की संभावना जताई गई है। जबकि उत्पादन में कमी और सरकारी खरीद जैसे सकारात्मक कारक हैं, लेकिन वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और कमजोर निर्यात मांग के चलते कपास बाजार में अस्थिरता बनी हुई है। निवेशकों और किसानों के लिए आगामी महीनों में कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर बनाए रखना आवश्यक होगा।